महावीर पुस्तकालय स्थाई मान्यता वाला अनुदानित रहा है। इसे 1995-96 तक अनुदान मिला। पर यहां नियुक्त पुस्तकालय अध्यक्ष लालचंद शर्मा व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुरेश टेलर को समय पर वेतन नहीं मिलने पर ट्रस्ट व कर्मचारियों में विवाद हो गया। इसके बाद से न तो दोनों कर्मचारियों को वेतन मिला और ना ही अनुदान। याचिका दायर करने पर सचिवालय ट्रिब्यूनल कोर्ट ने 17 जनवरी 1998 को पुस्तकालय सचिव को दो महीने में वेतन देने व ऐसा नहीं करने पर भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत ब्याज देने के आदेश दिए। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय को भी ट्रस्ट की बजाय अनुदान सीधे कर्मचारियों को देने को कहा। इसकी पालना नहीं होने पर कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। इसी बीच शिक्षा अधिनियम में संशोधन होने पर मामला 2004 में सिविल कोर्ट में आ गया। 2015 में देवस्थान विभाग व माधव सेवा समिति ने भी पुस्तकालय पर दावा पेश किया। इन याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने अक्टूबर 2023 में पुस्तकालय सचिव को तीन महीने में कर्मचारियों का बकाया वेतन देने व ऐसा नहीं करने पर पुस्तकालय की नीलामी के आदेश दिए। अब तय समय में वेतन नहीं देने पर पुस्तकालय नीलाम किया जा रहा है।
पुस्तकालय अध्यक्ष लालचंद शर्मा ने बताया कि वे 1987 और सुरेश टेलर 1993 से कार्यरत है। इन्हें 1995 तक वेतन मिला। इसके बाद से दोनों बिना वेतन के काम कर रहे हैं। बकौल शर्मा 2008 तक वे दानदाताओं के सहयोग से पुस्तकालय चलाते रहे। इसके बाद कोर्ट की कुर्की के आदेश से परिग्रहण पंजीयन जब्त होने पर यहां पाठकों का आना बंद हो गया। कोर्ट के निगरानी के आदेश के चलते दोनों इसके बाद भी पुस्तकालय में कार्यरत रहे। इस तरह वे करीब 29 साल से बिना वेतन के काम कर रहे हैं। हालांकि 1998 से चल रहे वेतन केस के चलते कोर्ट ने नीलामी राशि से कर्मचारियों को 1995 से 1998 तक के तीन साल के वेतन के ही भुगतान के आदेश दिए हैं। इसके खिलाफ भी कर्मचारी फिर कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
कोर्ट के आदेश के अनुसार दोनों कर्मचारियों का तीन महीने का वेतन ब्याज सहित पांच लाख 49 हजार 54 रुपए है। इसके लिए नीलाम हो रहे पुस्तकालय की शुरुआती बोली एक करोड़ 56 लाख 8 हजार 682 तय की गई है।
महावीर पुस्तकालय शहर की ऐतिहासिक धरोहर रहा है। इसमें 13 हजार पुस्तकें व 383 हस्तलिखित ग्रंथ हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद भी 1996 में उपचार के लिए सीकर आए तो उन्होंने यहां की किताबें पढ़ी थी। इसी तरह प्रदेश के पूर्व मुयमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा व सांसद सेठ गोविंददास, जैसी कई हस्तियां भी इसका लाभ ले चुकी है। ये विडंबना ही है कि महज दो कर्मचारियों को वेतन नहीं देने की वजह से ये विरासत खत्म हो जाएगी।