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सिरोही

राजस्थान में यहां आखातीज पर होती है शिकार की हेडा परम्परा, वन्यजीवों को दौड़ा-दौड़ा कर मारते हैं शिकारी

राजस्थान के आदिवासी इलाकों में कई परम्पराएं व कुरीतियां सदियों से चली आ रही है। सिरोही जिले के माउंट आबू व आसपास के क्षेत्र में आखातीज पर ​शिकार की हेडा परम्परा आज भी प्रचलित है। पुरातन मान्यताओं के चलते आदिवासियों में आखातीज पर शिकार की हेडा परम्परा है। इस परम्परा के नाम पर आखातीज पर मुहूर्त निकाल कर वन्यजीवों का शिकार किया जाता है। जिसमें ​शिकारी वन्यजीवों को दौड़ा-दौड़ा कर मारते हैं।

सिरोहीMay 09, 2024 / 03:34 pm

Satya

Wildlife Sanctuary Mount Abu

वन्यजीव अभयारण्य माउंट आबू

शिकारियों पर लगाम लगाने को वन विभाग मुस्तैद, वन्य क्षेत्र में गश्त करेंगे गश्ती दल

राजस्थान के आदिवासी इलाकों में कई परम्पराएं व कुरीतियां सदियों से चली आ रही है। सिरोही जिले के माउंट आबू व आसपास के क्षेत्र में आखातीज पर ​शिकार की हेडा परम्परा आज भी प्रचलित है। पुरातन मान्यताओं के चलते आदिवासियों में आखातीज पर शिकार की हेडा परम्परा है। इस परम्परा के नाम पर आखातीज पर मुहूर्त निकाल कर वन्यजीवों का शिकार किया जाता है। जिसमें ​शिकारी वन्यजीवों को दौड़ा-दौड़ा कर मारते हैं।
हालांकि अब यह परम्परा काफी पुरानी हो गई और ​शिकार पर रोकथाम को लेकर वन विभाग भी काफी सख्त रहता है, लेकिन अभी भी कई लोग चोरी छिपे वन्यजीवों का ​शिकार करने से नहीं चूकते। आइये जानते हैं क्या है हेडा परम्परा और ​शिकारी कैसे ​करते हैं शिकार। साथ ही इस बार वन विभाग की ओर से ​​इसकी रोकथाम के लिए क्या प्रबंध किए गए हैं। पेश है एक रिपोर्ट….
यह है शिकार की हेडा परम्परा

जानकारों के अनुसार पुरातन मान्यताओं के चलते माउंट आबू क्षेत्र में आखातीज पर शिकार की हेडा परम्परा है। इस दिन वे मुहूर्त निकाल वन्यजीवों का शिकार करते हैं। आखातीज के एक दिन पहले से ही शिकार शुरू हो जाता है। जो अगले दिन तक जारी रहता है। हर वर्ष जिले के भाखर अंचलों में वन्यजीवों का शिकार होता है। वन्यजीवों के शिकार पर रोकथाम को लेकर विभाग पूरी तरह से मुस्तैद है।
शिकार को दौड़ा-दौड़ा कर मारते हैं शिकारी

जानकारों की माने तो शिकारियों की ओर से जहां शिकार करना होता हैं, वहां जंगल में चारों ओर आग लगा देते हैं। फिर शिकारी जोर-जोर से शोर मचाकर, पत्थर मारकर शिकार को ढूंढते हैं। इस चिल्लाने की प्रक्रिया को हाका कहते हैं। शिकारी शिकार मिलने पर उसे अग्नि की तरफ दौड़ाते हैं। आग लगने की वजह से शिकार अग्नि चक्र के अंदर दौड़ता रहता है। दौड़ते-दौड़ते हांफ-हांफ कर शिकार बेबस हो जाता है और शिकारी इसका फायदा उठाकर शिकार को मार देते हैं।
भाखर अंचल में होता है ​शिकार, रोकथाम के लिए वन विभाग मुस्तैद

हेडा परम्परा के अनुसार हर वर्ष जिले के भाखर अंचल में वन्यजीवों का शिकार होता है।​शिकार आखातीज के एक दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। जो अगले दिन तक जारी रहता है। हालांकि वन्यजीवों के शिकार की घटनाओं की रोकथाम को लेकर अब वन विभाग पूरी तरह से मुस्तैद हो गया है। वन विभाग की अेार से टीमें गठित कर वन्य क्षेत्र में सघन गश्त शुरू कर दी गई है। वन विभाग की ओर से जंगल में व्यापक स्तर पर गश्त के लिए वन कर्मियों के साथ होमगार्ड, नेचर गाइड की इमदाद भी ली गई है। यह गश्ती दल शिकारियों के साथ ही अवैध खनन पर भी कड़ी निगरानी रखेंगे।
जगह-जगह नाकाबंदी

वन विभाग सूत्रों के अनुसार विशेषकर अक्षय तृतीया के दौरान वन्यजीवों के शिकार पर रोक लगाने की कारगर व्यवस्था के चलते आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में वनकर्मियों की गश्त, जगह-जगह नाकाबंदी व्यवस्था, मुखबिरों की नियुक्ति की गई हैं। जो निरंतर वन्यजीवों के शिकार होने के संभावित क्षेत्रों की रात-दिन गश्त करेंगे।
इनका कहना है…

आखातीज के मौके पर वन्यजीवों के शिकार पर लगाम कसने को वन कर्मियों को दायित्व सौंप दिए गए हैं। मुखबीर भी नियुक्त किए गए हैं। आखातीज के दिन पूरे वन मंडल के सभी रेंजों में गश्ती दल भेजे जाएंगे। जिसके तहत होमगार्ड, नेचर गाइड जाब्ते के साथ अलग-अलग पेट्रोलिंग करेंगे। पुलिस से भी इमदाद लेने का निवेदन किया जाएगा।
नंदलाल प्रजापत, उपवन संरक्षक, माउंट आबू

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